संदेश

अंग अंग जख्मी है पोर पोर में दर्द तू नहीं समझेगा नहीं तो देता क्यों कर ! सीमा असीम 17,2,20 
छोड़ दो उस शख्स को  जो आँखों में आँसू भर दे 
तुम मेरे हो यह जानती हूँ मैं  गैर कुछ भी कहें क्या फर्क पड़ता है  सीमा असीम  16,2,20 
shayri बहने लगते हैं अश्क फिर मन संभलता नहीं दुविधा है कि तुमसे क्या कहें क्या न कहें हम सीमा असीम 16,2,20